क्षणिकाएं – १४

क्षणिकाएं १४

(१)

जीवन में पतझड़ जब तक न आए
नए फूल पत्ते फिर कैसे मुस्कुराएं
शरद ऋतु जब तुमको सताए
समझो अगले मोड पे बसंत खड़ा है बाहें फैलाए।।

(२)

अचानक शब्दों के अक्स गढ़ लेता हूं
मन में आड़ी तिरछी लकीरें खींच कर
उन में आशाओं के सतरंगी रंग भर देता हूं
लोग ये कहते हैं, मैं भी शेर पढ़ लेता हूं।।

(३)

भूल से भूलकर भी जो तुमको भुलाऊं
मेरी जान हो तुम ये जान जाओ।
कि ये दिल धड़कता है यादों से तेरी
तुम हो सांस मेरी ये मान जाओ।।

(४)

मेरी हर बात चुभती है तुम्हें,
मेरे मन को भी है ये खबर
फिर भी ढूंढती है तुम्हीं को,
हर पल हमारी ये नजर।।

आभार – नवीन पहल – १६.०८.२०२२ 🎉🌹🙏💐


     


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7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

20-Aug-2022 03:06 PM

बहुत खूबसूरत

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shweta soni

20-Aug-2022 11:18 AM

Behtarin rachana

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Achha likha hai

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